
अभी भी…
कुछ खामोश तनहासी लम्होमे
कुछ दब गए से किस्सो की
बारात निकल ही आती है…
आधी खुली सी नजरो मे
कुछ छप गए थे वो पल जो
यादें बनके सदियों की…
वो याद उभर सी आती है…
तुम कुछ भी न थे
कितनो के लिए
पर सब कुछ थे मेरे फिर भी
सच में फिर भी मेरे ना थे
उन ना बंधे से रिश्तों की
सौगात समझ फिर आती है…
कभी तुम्हे छुआ भी नहीं
ना तुम्हारी सोच का हिस्सा थी
फिर भी जिया था हर पल वो
जो मन से मैंने चूम लिया
क्यों की तब तुम मौजूद थे
पल मेरी खुशी के सबूत थे..
तुम रात का वो तारा थे
जो दूर से पास और खास था
सब कुछ वैसे का वैसा है
उतनेही पास और खास हो
अभी भी…